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हिरासत में बंदी की मौत, हाई कोर्ट ने शासन को मुआवजा देने का आदेश दिया, राज्य के कर्मचारियों ने की थी लापरवाही

Mohammed Israil
Mohammed Israil  - Editor
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बिलासपुर। छत्तीसगढ हाईकोर्ट ने आबकारी एक्ट के तहत गिरफ्तार कर जेल भेजे गए बंदी की दो दिन बाद मौत के मामले में सुनवाई करते हुए इसके लिए राज्य के कर्मचारियों की लापरवाही माना एवं शासन को मुआवजा देने का आदेश दिया है। आदेश का पालन नहीं होने पर 9 प्रतिशत उक्त राशि पर ब्याज देना होगा।
सीपत पुलिस ने 18 जनवरी 2024 को ग्राम मोहरा निवासी श्रवण सूर्यवंशी उर्फ सरवन तामरे उम्र 35 वर्ष को कच्ची शराब रखने के आरोप में हिरासत में लिया। उसके पास से 6 लीटर महुआ शराब जब्त किया गया था। मेडिकल कराने के बाद उसे 18 जनवरी को केन्द्रीय जेल बिलासपुर भेज दिया गया। 21 जनवरी को उसे स्वास्थ्य खराब होने पर जेल से सिम्स में भर्ती कराया गया। 22 जनवरी की सुबह उसकी अस्पताल में मौत हो गई। पुलिस ने मर्ग कायम कर उसी दिन शाम को पीएम कराया। पीएम रिपोर्ट में सिर में चोट व सदमा से उसकी मौत होने की रिपोर्ट दी। मृतक श्रवण की बेवा लहार बाई व नाबालिग बच्चों ने अधिवक्ता राजीव दुबे के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर मुआवजा दिलाए जाने की मांग की। याचिका में चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा एवं जस्टिस बीडी गुरू की डीबी में सुनवाई हुई। मामले की न्यायिक जांच कराई गई। इसमें न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी ने जांच प्रतिवेदन में उसकी मौत सिर के चोट की जटिला के कारण होने की रिपोर्ट दी। सभी पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता, जो मृतक की विधवा और बेटियाँ हैं, बंदी गलत तरीके से हुए नुकसान के लिए मुआवजे के हकदार हैं। राज्य के कर्मचारियों की लापरवाही से मौत हुई है। न्यायालयों ने बार-बार इस तरह के आचरण की निंदा की है पुलिस/जेल अधिकारी इसका हिस्सा हैं। राज्य एक निवारक प्रभाव डालें ताकि उसके अधिकारी ऐसा न करें ऐसे कृत्यों में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित नहीं किया जाए। श्रवण सूर्यवंशी की असामयिक मृत्यु के कारण याचिकाकर्ताओं ने संपत्ति, प्यार और स्नेह और निर्भरता खो दी है। कोर्ट ने शासन को याचिकाकर्ताओं को एक लाख रूपये मुआवजा देने का आदेश दिया है।

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