00 बाघ को लेकर आसपास के गांव में फैली थी दहशत
00 कसडोल से रेडियो कॉलर के साथ सुरक्षित रेस्क्यू
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के कसडोल में मंगलवार को एक टाइगर का सुरक्षित रेस्क्यू कर लिया गया। प्रवासी बाघ की कहानी राज्य में वन्यजीव संरक्षण की मौजूदा चुनौतियों और संभावनाओं को सामने लाती है। इस बाघ को बेहोश कर (ट्रेंकुलाइजर) सुरक्षित रूप से रेस्क्यू किया गया और उसे रेडियो कॉलर पहनाया गया है। अब वन विभाग के सामने यह सवाल है कि इसे राज्य के किस टाइगर रिजर्व में छोड़ा जाए।
बार नवापारा से कसडोल तक की यात्रा:
यह बाघ सबसे पहले मई माह में बार नवापारा अभ्यारण्य में देखा गया था। हमारे द्वारा ही सबसे पहले इस बाघ की पुष्टि की गई थी और यह भी जानकारी दी गई थी कि यह बाघ ओडिशा से प्रवास करते हुए छत्तीसगढ़ आया है। बार नवापारा में टाइग्रेस की अनुपस्थिति ने इस बाघ को निराश किया और वह साथी की तलाश में आगे बढ़ गया। जंगलों से निकलकर यह कसडोल के खेतों और बस्तियों तक पहुंच गया।
रेस्क्यू अभियान की चुनौतियां
बाघ के कसडोल पहुंचने से इलाके में हलचल मच गई थी। वन विभाग की टीम ने सतर्कता के साथ इसे सुरक्षित बेहोश किया। ट्रेंकुलाइजर के दो डार्ट में से एक मिस हो गया, लेकिन दूसरा सफलतापूर्वक बाघ को शांत करने में कामयाब रहा। इसके बाद, बाघ को रेडियो कॉलर पहनाकर सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया।
क्यों जरूरी है सही टाइगर रिजर्व का चुनाव?
रेस्क्यू के बाद सबसे बड़ा सवाल है कि इस बाघ को किस टाइगर रिजर्व में छोड़ा जाए। विशेषज्ञों की राय में, इसे अचानकमार टाइगर रिजर्व में छोड़ना सबसे उपयुक्त होगा। इसके पीछे कई कारण हैं:
- अचानकमार में टाइग्रेस की संख्या अधिक है, जिससे इस बाघ को अपना साथी आसानी से मिल सकता है।
- पर्याप्त प्राकृतिक संसाधन और भोजन यहां उपलब्ध है, जो एक युवा नर बाघ के लिए जरूरी है।
- रेडियो कॉलर ट्रैकिंग के जरिए वन विभाग इस बाघ की गतिविधियों पर नजर रख सकेगा, जिससे मानव-बाघ संघर्ष की संभावना कम होगी।
मानव-बाघ संघर्ष: एक चेतावनी
कसडोल की घटना एक बार फिर यह चेतावनी देती है कि वन्यजीवों और मानव बस्तियों के बीच संघर्ष की संभावना हमेशा बनी रहती है। इस बाघ ने किसी पर हमला नहीं किया, लेकिन भीड़ जुटने से स्थिति गंभीर हो सकती थी। लोगों को वन्यजीवों के प्रति जागरूक और सतर्क रहने की जरूरत है।
क्या है बाघ संरक्षण का भविष्य
छत्तीसगढ़ में बाघ संरक्षण की दिशा में यह घटना एक महत्वपूर्ण मोड़ है। प्रवासी बाघों के संरक्षण के लिए वन विभाग को उनकी जरूरतों को समझकर, उचित कदम उठाने होंगे। टाइग्रेस की अनुपलब्धता जैसे मुद्दों का समाधान करना होगा ताकि प्रवासी बाघ स्थायी रूप से जंगलों में बस सकें।