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खोज परक पत्रकारिता  नहीं रही, अब आर्थिक दबाव का युग: कमलेश

Mohammed Israil
Mohammed Israil  - Editor
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00 विचार मंच की 154 गोष्ठी में पटना से कहानी करने अपने अनुभव किए साझा

बिलासपुर।विचार मंच की 154वीं गोष्ठी में पटना से आए कहानीकार कमलेश ने अपने पत्रकारीय जीवन के अनुभव एवं कहानीकार बनने की प्रक्रिया का विवेचन प्रस्तुत किया.
उन्होंने बताया कि पत्रकार की कुछ सीमाएं होती हैं, सब कुछ अखबार में नहीं छापा जा सकता. जो अनछपा रह जाता है वह मन में कुलबुलाते है तब उसे व्यक्त करने के लिए कहानीकार का उदय होता है. पहले पत्रकारिता खोजपरक होती थी, अब वैसी न रही. अब आर्थिक दबाव का युग है, पत्रकार नहीं रह गए, अब अखबार के नौकर हो गए हैं. जो मालिक चाहता है, वह लिखा जाता है. राष्ट्रीय पाठशाला में आयोजित इस कार्यक्रम में कमलेश ने पत्रकारिता पर अपने विचार रखते हुए समाचार पत्र में सामाजिक सरोकार वाले विषयों को सम्मिलित कराने में पाठक वर्ग की महत्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने अपनी कहानी “अघोरी” का पाठन कर कहानी के पात्रों को उनके संवाद,भावनाओं का प्रत्यक्षीकरण कर श्रोताओं को नीरव श्रांति श्रावक बनाने में सफल रहे। कहानी वैवाहिक समस्या, अघोरी जीवन के मनोवैज्ञानिक पक्ष को प्रस्तुत करती हुई सुखद अंत तक पहुंचने में सफल रही। कहानी की समीक्षा में भाग लेते हुए रामकुमार तिवारी ने इसके पात्रों की भूमिका को रेखांकित किया. अंजनी कुमार तिवारी ‘सुधाकर’ ने कहानी के मनोवैज्ञानिक पक्ष पर बातें रखीं. संतोष कुमार ने पत्रकारिता पर संबंधित प्रश्न पूछे.

कार्यक्रम का स्वागत संबोधन एवं आभार प्रदर्शन विचार मंच के संयोजक द्वारिका प्रसाद अग्रवाल द्वारा किया गया। इस अवसर पर निहाल सोनी, मुदित मिश्रा, विरेन्द्र अग्रवाल, कान्हा सोनी, गौरव गुलहरे, युवराज सोनी, आशीष कुमार खंडेलवाल, धनराज सोनी, अरुण दाभड़कर, संतोष कुमार, अंजनी कुमार तिवारी’सुधाकर’, देवानंद दुबे, महेश श्रीवास, रामकुमार तिवारी, देवी प्रसाद शुक्ल, योगेंद्र कुमार साहू, जगदीश दुआ, देवसिंह कुंवर, रंजना श्रीवास्तव, डा. अद्वैत एवं जगदीश दुआ उपस्थित थे.

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