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छत्तीसगढ़ के बिलासपुर  में स्मार्ट घोटाला… ठेकेदार , निगम के अफसर और बैंक अधिकारियों ने मिलकर 77 लाख की fdr में की गड़बड़ी

Mohammed Israil
Mohammed Israil  - Editor
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00 स्मार्ट सिटी फंड में  घोटाले के बाद भी दोषियों के खिलाफ नहीं हुई कोई बड़ी कार्रवाई

00 पेनल्टी लगाकर मामले को दबाने की हो रही कोशिश

बिलासपुर नगर निगम में स्मार्ट सिटी फंड के तहत किए गए एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश हुआ है। यह मामला 77 लाख रुपए की एफडीआर (फिक्स्ड डिपॉजिट रसीद) में गड़बड़ी से जुड़ा है। ठेकेदार, निगम के अफसर और बैंक कर्मचारियों की मिलीभगत से यह फर्जीवाड़ा किया गया।

कैसे हुई गड़बड़ी?

स्मार्ट सिटी परियोजना के तहत करोड़ों रुपए की लागत से नाली निर्माण के लिए टेंडर जारी किया गया था।  ठेकेदार कमल ठाकुर ने सबसे कम दर पर टेंडर हासिल किया। लेकिन, ठेकेदार ने नाली निर्माण का काम पूरा किए बिना ही अपनी एफडीआर की राशि निकाल ली।

प्रावधानों के अनुसार, किसी भी टेंडर के अधूरे रहने पर एफडीआर की राशि का भुगतान नहीं किया जाता। लेकिन ठेकेदार ने निगम कर्मचारियों की मदद से ओरिजिनल एफडीआर को हासिल कर लिया और उसकी जगह फोटो कॉपी जमा कर दी। इस प्रक्रिया में बैंक अधिकारियों की भी मिलीभगत सामने आई।

कब और कैसे हुआ खुलासा?

यह गड़बड़ी तब सामने आई जब नगर निगम आयुक्त अमित कुमार ने पुराने टेंडर को दोबारा रिटेंडर करने का आदेश दिया। दस्तावेजों की जांच के दौरान यह स्पष्ट हुआ कि ठेकेदार ने पहले ही एफडीआर की रकम निकाल ली थी।

इसके बाद निगम अधिकारियों में हड़कंप मच गया। गड़बड़ी को दबाने के लिए ठेकेदार पर केवल 16 लाख रुपए का जुर्माना लगाकर मामले को निपटाने की कोशिश की गई।

बैंक की भूमिका पर सवाल

इस घोटाले में बैंक की भूमिका भी संदिग्ध है। नियमों के मुताबिक, एफडीआर की राशि बैंक से तभी निकाली जा सकती है जब नगर निगम इसके लिए एनओसी जारी करे। लेकिन बैंक ने बिना एनओसी के ही 77 लाख रुपए की राशि ठेकेदार को जारी कर दी।

आयुक्त ने दी सफाई

निगम आयुक्त अमित कुमार ने कहा, “एफडीआर भुगतान में हुई गड़बड़ी के मामले में ठेकेदार पर 16 लाख रुपए का जुर्माना लगाया गया है। इसके अलावा, बैंक के खिलाफ कार्रवाई के लिए आरबीआई को पत्र लिखा गया है।”

घोटाले में और क्या खुलासा हुआ?

दस्तावेजी लापरवाही: यह पाया गया कि टेंडर को मौखिक रूप से रद्द किया गया था, लेकिन इसकी कोई लिखित प्रक्रिया पूरी नहीं की गई।

धोखाधड़ी का तरीका: ठेकेदार ने निगम कर्मचारियों और बैंक अफसरों के साथ मिलकर ओरिजिनल एफडीआर हासिल कर ली और राशि आहरित कर ली।

पेनल्टी के नाम पर लीपापोती: ठेकेदार पर जुर्माने के रूप में 16 लाख रुपए लगाए गए, जबकि गड़बड़ी की राशि 77 लाख रुपए थी।इस मामले में विशेषज्ञों का कहना है कि यह एक सोची-समझी साजिश है, जिसमें निगम और बैंक दोनों की मिलीभगत है। जुर्माने के बजाय ठेकेदार और दोषी अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की जानी चाहिए।

क्या है एफडीआर?

टेंडर प्रक्रिया में एफडीआर (फिक्स्ड डिपॉजिट रसीद) जमा कराई जाती है। यह एक तरह की गारंटी होती है कि ठेकेदार काम पूरा करेगा। अगर काम अधूरा रहता है, तो यह राशि राजसात कर ली जाती है।

सरकार की चुप्पी पर सवाल

हालांकि, इस गड़बड़ी के खुलासे के बाद भी राज्य सरकार या उच्च अधिकारियों की ओर से कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है। विपक्षी दलों ने इस मामले पर सवाल उठाते हुए जांच की मांग की है।

आगे की कार्रवाई क्या हो सकती है?

  1. कानूनी कदम:

ठेकेदार और निगम अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज होनी चाहिए।

बैंक की भूमिका की जांच हो और दोषी बैंक अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई हो।

  1. वसूली और दंड:

ठेकेदार से पूरी राशि ब्याज सहित वसूल की जाए।

निगम और बैंक कर्मचारियों को निलंबित कर निष्पक्ष जांच की जाए।

  1. स्मार्ट सिटी परियोजना की समीक्षा:

स्मार्ट सिटी फंड से जुड़े सभी प्रोजेक्ट्स की जांच की जाए।

भ्रष्टाचार रोकने के लिए नई निगरानी समितियों का गठन हो।


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