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छत्तीसगढ़ी राजभाषा पद्मश्री चतुर्वेदी की सोच और केंद्र की आठवीं अनुसूची में शामिल कराना उनका सपना था:कौशिक

Mohammed Israil
Mohammed Israil  - Editor
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चतुर्वेदी की सातवीं पुण्यतिथि पर जन्म शताब्दी पर वृहद कार्यक्रम की रूपरेखा बनी

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ विधानसभा के पूर्व स्पीकर, मौजूदा विधायक धरमलाल कौशिक ने कहा कि छत्तीसगढ़ी राजभाषा पद्मश्री चतुर्वेदी की सोच और उसे केंद्र की आठवीं अनुसूची में शामिल कराना उनका सपना था। शनिवार को पद्मश्री श्यामलाल चतुर्वेदी स्मार्ट रोड पर स्थित प्रतिमा पर उनकी सातवीं पुण्यतिथि पत्रकार, साहित्यकार, राजनेता और बुद्धीजीवियों की उपस्थिति में मनाई गई। इस मौके पर थावे विद्यापीठ के कुलपति डा.विनय पाठक ने कहा कि पं चतुर्वेदी की जन्म शताब्दी 2026 में मनाई जाएगी, इसके वृहद आयोजन के लिए रूपरेखा बनाई जा रही है।

पुण्यतिथि कार्यक्रम में कौशिक ने कहा कि छत्तीसगढ़ में छत्तीसगढ़ी को जो स्थान मिला है, उसमें चतुर्वेदीजी का बहुत बड़ा योगदान है। छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग के गठन और प्रथम अध्यक्ष की नियुक्ति की बात आई तो पं चतुर्वेदी के छत्तीसगढ़ और छत्तीसगढ़ी के प्रति योगदान, उनकी सोच के कारण उन्हें सर्वथा उपयुक्त पाया गया, आगे उनके व्यक्तित्व व कृतित्व के कारण उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया गया। उन्होंने कहा कि मेरे स्पीकर रहते छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा देने का बिल पारित हुआ और अब कोई भी विधायक सदन में छत्तीसगढ़ी भाषा में प्रश्न पूछ सकते हैं।

दल से नहीं, दिल से काम करते थे:सुशांत

बेलतरा विधायक सुशांत शुक्ला ने कहा कि पं चतुर्वेदी दल से नहीं, अपितु दिल से कार्य करते थे, शायद इसी कारण वह बिलासपुर की पहचान बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि पं चतुर्वेदी छत्तीसगढ़ी को राजभाषा बनाने केंद्र की आठवीं अनुसूची में शामिल करने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहे, अब उनके इस कार्य को छत्तीसगढ़ की अस्मिता से जोड़ कर अस्तित्व की लड़ाई लड़ने का वक्त आ गया है। उन्होंने कहा कि 24 साल की तरुणाई वाला छत्तीसगढ़ पं चतुर्वेदी के जीवन, उनके संघर्ष और भाषायी अस्मिता के अस्तित्व से सीख ले सकता है, तो आज हमें उनके आदर्शों को आत्मसात करना चाहिए।

‘बेटी के बिदा’ने राष्ट्रीय पहचान दिलाई

थावे विद्यापीठ के कुलपति डा.विनय पाठक ने कहा कि 1987 में भारतेंदू साहित्य समिति ने मेरे संपादकत्व में पं चतुर्वेदी पर अभिनंदन ग्रंथ प्रकाशित किया, उनके व्यक्तित्व व कृतित्व पर उनके निर्देशन में 4 स्टूडेंट पीएचडी कर चुके हैं। ‘बेटी की बिदाई’पर कई कवियों ने लिखा है पर पं चतुर्वेदी की चार पंक्तियां- ‘का बरम्हा के बेटी नइये, का बिदा के दुख नहीं जानय, जब बिदा करे के बेरा आतिस, तव अंधरी, भैरी कर देतिस’, उनकी रचना को राष्ट्रीय फलक पर ले जाती हैं। महापौर रामशरण यादव ने कहा कि पं चतुर्वेदी अपनी सादगी और बिना लाग लपेट के खरे संवाद के लिए जाने जाते थे। तत्कालीन पूर्व मंत्री बीआर यादव उनके घनिष्ट थे, जिनके साथ उन्हें भी कार्य करने का अवसर मिला।

भावी पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्त्रोत..

पूर्व मेयर किशोर राय ने मांग की कि पं चतुर्वेदी के जीवन वृत्त और कोटेशन शिलालेख में लिखाए जाने चाहिए ताकि भावी पीढ़ी उससे प्रेरणा ले सके। साहित्यकार एके यदु ने कहा कि पं चतुर्वेदी अविभाजित मध्यप्रदेश में भी उम्दा कोटि के साहित्यकार, पत्रकार के रूप में जाने जाते थे,इसीलिए उनकी राष्ट्रीय पहचान बनी। छत्तीसगढ़ी कवि सनत कुमार तिवारी ने अपनी ओजपूर्ण शैली में काव्य पाठ किया।

ये शामिल रहे

कार्यक्रम में नगर निगम के उप नेता राजेश सिंह ठाकुर, कांग्रेस नेता राकेश शर्मा, राजकुमार तिवारी डा. एमएल टेकचंदानी, राघवेंद्र दुबे, राष्ट्रीय कवि मंच के जिलाध्यक्ष अंजनी कुमार तिवारी, बिलासपुर प्रेस क्लब के उपाध्यक्ष संजीव पांडेय, उमेश मौर्य, जितेंद्र सिंह ठाकुर, डा. मनोज चौकसे, शशिकांत अंबिका चतुर्वेदी, सूर्यकान्त ममता चतुर्वेदी, अंबर सोमी चतुर्वेदी, कर्ण अपर्णा चतुर्वेदी, डा. सुषमा शर्मा, राकेश पांडेय, पीयूष गुप्ता, विष्णु कुमार तिवारी आदि उपस्थित थे।

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