बिलासपुर। देवउठनी एकादशी बाबा आनंद राम दरबार के सेवादारियों के द्वारा चकरभाटा में धूमधाम के साथ मनाई गई। इस अवसर पर भक्त कवंर राम सिंधी धर्मशाला में सांई कृष्ण दास जी वह एकादशी वाले बलराम भैया जी के द्वारा सत्संग कीर्तन करके साध संगत को निहाल किया। कार्यक्रम की शुरुआत रात्रि 8:00 बजे भगवान राधा कृष्ण,व बाबा भगत राम जी के फोटो पर पुष्प अर्पण कर दीप प्रज्वलित करके की गई। बलराम भैया जी के द्वारा देवउठनी एकादशी क्यों मनाई जाती है इसका महत्व क्या है इसके बारे में बताया गया, “जो भगवान कभी सोते नहीं वो चार माह के बाद भगवान विष्णु अपनी निद्रा से जागते हैं!” उसके साथ ही चातुर्मास का समापन होता है। श्री हरि विष्णु की दया से शुभ कार्य आज से फिर से आरंभ हो जाते हैं। माता तुलसी शालिग्राम जी का भी विवाह किया जाता है। जिसके साथ ही घर गृहस्ती के शुभ कार्य विवाह के कार्य एवं सभी कार्य आज से आरंभ हो जाते हैं आज की एकादशी सबसे बड़ी एकादशी मानी जाती है आज के दिन सभी देव सृष्टि को चलाने के लिए कार्य करना आरंभ कर देते हैं एवं कई भक्ति भरे भजन गिए जिसे सुनकर भक्तजन भाव विभोर हो गए इस अवसर पर सांई कृष्ण दास जी के द्वारा साध संगत को ज्ञानवर्धक कथा सुनाई, एक रामपुर गांव में अंगद नाम का एक व्यक्ति रहता था वह उसकी पत्नी का नाम था सुशीला वह बहुत भक्ति वाली थी हमेशा सत्संग कीर्तन में जाती थी व संत महात्माओं का पूजा पाठ करती थी एक दिन उसने अपने पति को भी कहा की सुनो जी हमारे गांव में ही भागवत कथा चल रही है संत महात्मा आए हैं चलो चल के कथा सुनो व संतो का आशीर्वाद भी ग्रहण करो तो उसका पति अंगद बहुत गुस्सा हो गया और नाराज हो गया उसने कहा तुमको जाना है तुम जाओ पर मुझे कभी भी मत बोलना सत्संग कीर्तन में चलने के लिए सुशीला ने सोचा फालतू में दिन भर पत्थर के साथ माथा खपाती रहती हूं इसका कुछ नहीं होने वाला है उठ कर चले गई और सत्संग कीर्तन भागवत कथा सुनाने लगी भागवत समापन के एक दिन पूर्व उसने संतों से कहा कि कल भागवत समापन हो जाएगा तो आपसे मेरा निवेदन है कि आप मेरे घर में अपने चरण घूमाने जरूर आए वह भोजन ग्रहण करें वह सत्संग कीर्तन की वर्षा भी करें संत ने कहा हम जरूर आएंगे सुशीला ने उनको 2:00 बजे का समय दिया था, वह उसे पता था कि उसका पति सुबह 12:00 चले जाता है शाम को 4:00 आता है तब तक सत्संग समाप्त हो जाएगा और संत महात्मा भी चले जाएंगे दूसरे दिन भागवत समापन के बाद संत महात्मा और मंडली के साथ घर पहुंचे कीर्तन भजन किया और जैसे ही भोजन ग्रहण करने वाले थे वैसे ही अंगद बाहर पहुंच गया और देखा तो बाहर बहुत सारी चप्पल पड़ी थी उसने सोचा यह घर मेरा है कि किसी दूसरे का घर है पर जैसे ही अंदर जाकर देखा तो यह मेरा ही घर है अंदर गया सामने संत बैठे हैं पूरी मंडली बेठी हैं और सुशीला सबको खाना परोस रही है और भजन गा रही है यह देखकर अंगद आग बबूला हो गया और सबको वहां से अबशब्द कहते हुए भगा दिया संत जनों को भी कहा कि आप यहां से चले जाएं क्योंकि मेरा गुस्सा बहुत भयंकर है नहीं तो मुझे और भी रास्ता आता है भगाने का संत बड़े दयालु थे उन्होंने उसको आशीर्वाद दिया कि भगवान आपको सद्बुद्धि दे और वहां से चले गए बगैर खाना खाए सुशीला को बहुत दुख हुआ उसने अपने पति से कहा कि आपने संतों का अपमान करके अच्छा नहीं किया है आपको अगर कोई तकलीफ थी तो मुझे आप चार बातें सुना देते दो जूते मार लेते मैं खा लेती पर संतों का अपमान करके आप आज ने मुझे बहुत दुखी कर लिया है आज के बाद में प्रंण लेती हूं कि आपका चेहरा कभी नहीं देखूंगी। उसने दूसरे दिन से ही अपने चेहरे पर पल्लू ढक दिया नितनेम पति की सेवा करती थी पर पति के सामने पल्लू ऊपर नहीं उठाती थी।
एक दिन गुजर गया दो दिन गुजर गए 5 दिन गुजर गए। अंगद को यह बात अच्छी नहीं लग रही थी क्योंकि वह घंटा भर अपनी पत्नी के चेहरे को निहारता था पर उसकी पत्नी अपनी बातों पर अडीग थी अंगत ने समझाने की कोशिश की माफी भी मांगी पर वह नहीं मानी एक दिन अंगद घर से बाहर निकाला देखा तो सामने श्रीमद् भागवत कथा आरंभ होने वाली है प्रथम दिन था उसने सोचा जाकर देखूं तो सही आखिर यह सत्संग कीर्तन में होता क्या है जो मेरी पत्नी इतनी पागल हो गई है जब वह उस भागवत कथा में पहुंच प्रथम दिन , विराजमान कथा वाचक संत अपनी अमृतवाणी में भागवत कथा सुनाने लगे दो घंटा बीत जाने के बाद अंगद भाव विभोर हो गया उसकी आंखें भर आई 4 घंटे के बाद भगवात विश्राम हुई। वह अपने घर प्रस्थान कर गया और दूसरे दिन 3:00 बजे भागवत कथा आरंभ होने वाली थी वह 15 मिनट पहले पहुंचकर सामने बैठ गया कहीं बाद में समय मिले ना मिले बैठने के लिए जगह पीछे मिले तो सामने बैठकर ही भागवत कथा सुनने लगा और जैसे ही भजन कीर्तन बीच में चलने लगे तो उसके हाथ अपने आप ही ताली बजाने लगा और खुश होने लगा तीसरे दिन भागवत में फिर पहुंचा और भजन कीर्तन शुरू हुआ तो नाचने लगा ऐसे करते हुए 7 दिन पूरे उसने भागवत कथा सुनी 8 वें दिन फिर पहुंच गया, तब देखा तो वहां भागवत हो नहीं रही है तो उसने पूछा तो उसने गांव वाले ने बताया कि भाई भागवत कथा समाप्त हो चुकी है 7 दिन की थी तो अब संत बगल वाले गांव चले गए हैं, वहां भागवत हो रही है तो अंगद बिलासपुर पहुंच गए। भागवत कथा सुनने के लिए संत जी अमृतवाणी में भागवत सुना रहे थे वहां पर भी वह प्रति दिन तक आया और कथा सुनी भागवत सुना ऐसे करते-करते 6 माह बीत गए फिर से रामपुर गांव में और एक बार सत्संग कीर्तन की अमृत वर्षा होने लगी पर इस बार उसकी पत्नी भी सत्संग कीर्तन सुनने लगी। अब उसे तो पता नहीं था कि उसका पति भी 6 माह से वह सत्संग में जाने लगा है अब तो दोनों पति-पत्नी अगल,बगल में बैठे हुए थे पर दोनों एक दूसरे से अनजान थे जैसे ही भजनकीर्तन चलने लगा उसका पति खड़े होकर नाचने लगा झुमने लगा, भाव से विभोर होकर आंखों से आंसू बहाने लगा। सब लोग उसको देखने लगे तो जब उसकी पत्नी भी देखा इतने सरल प्रेम से भरा यह कौन व्यक्ति है तो देखकर हैरान हो गई अपनी आंखों को मचलते हुए फिर से देखा अरे यह तो मेरा पति है तब उसे पता चला कि यह विगत 6 महीना से अलग-अलग गांव में जाकर सत्संग कीर्तन संतों के सुन रहा है वह सत्संग समापन के पहले अपने घर पहुंच गई और जैसे ही उसका पति आया उसने अपना घूंघट इस बार उठा के रखा था पर उसके पति ने कहा लगता है तुमने अपना घूंघट नीचे नहीं रखा है नीचे कर लो मैं आ गया हूं सुशीला ने कहा मुझे अब घूंघट नीचे करने की जरूरत नहीं है आप देखो मुझे जितना देखना है तो अंगद ने कहा ऐसा क्यों ,शुशीला ने कहा कि अब आप वह पुराने मेरे पति नहीं हो अब तो आप एक भक्त बन गए हो तब अंगद ने कहा अब मुझे इन आंखों से किसी और को देखने की जरूरत नहीं है बस मेरा मन करता है दिन भर में भगवान को निहारूं, संतो को देखूं यह बात सुनकर सुशीला उनके चरणों में गिर गई और माफी मांगी। दूसरे दिन
दोनों पति-पत्नी सत्संग कीर्तन सुनने जाने लगे पर यह बात उनके रिश्तेदारों को पसंद नहीं थी एक दिन किसी रिश्तेदार ने ज्यादा पैसा देकर एक व्यक्ति को उसके रिश्तेदार के पास भेजकर, खाने में जहर मिलवा दिया अंगद प्रतिदिन खाना खाने से पहले भगवान को भोग लगाकर खाना खाता था उसकी रिश्तेदारी खाने लेकर पहुंची अंगद को खाने के लिए कहा
अंगद ने पूछा भोग लगाया है प्रभु को उसने कहा हां लगाया आप खा लो जैसे ही उसने खाने लगा उसके रिश्तेदार ने उसे रोक दिया और सारी बात बता दी कि आप अच्छे आदमी जो भक्त आदमी हो मैं यह पाप नहीं कर सकती इसमें जहर मिला हुआ है मुझे पैसे दिए गए थे आपको खाने में जहर डालकर मारने के लिए आप यह खाना मत खाओ अंगद ने कहा “तुमने भोग लगाया है भगवान को कहा था हां अब यह प्रभु का प्रसाद है” और मुझे मारना भी होगा तो प्रभु के हाथ में हूं, मै जरूर खाऊंगा उसने पूरा खाना खा लिया पर अंगद को कुछ नहीं हुआ, क्योंकि उसका विश्वास प्रभु के ऊपर अब पूरा हो चुका था । जिसे विश्वास अपने भगवान पर जब हो जाता है तब उसे किसी भी चीज की जरूरत नहीं होती है कोई भय और डर नहीं होता है सत्संग की महिमा कितनी बड़ी है इस कथा के माध्यम से पता चली कार्यक्रम के आखिर में आरती की गई प्रसाद वितरण किया गया आज के पूरे कार्यक्रम का सोशल मीडिया के माध्यम से लाइव प्रसारण किया गया हजारों की संख्या में घर बैठे लोगों ने आज के कार्यक्रम का आनंद लिया इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए बड़ी संख्या में भक्तजन
बिलासपुर चकरभाटा भाटापारा तिल्दा रायपुर भिलाई कोरबा से आए थे इस पूरे कार्यक्रम को सफल बनाने में बाबा आनंदराम सेवा समिति और रोहरा परिवार ने सेवा की।
चकरभाठा बिलासपुर कोरबा रायपुर भिलाई के सभी सेवादारियों का विशेष सहयोग रहा इस पूरे कार्यक्रम को कवर करने के लिए हमर संगवारी के प्रधान संपादक विजय दुसेजा विशेष रूप से चकरभाटा पहुंचे और कार्यक्रम को कवर किया।