00 पूर्व मालगुजार स्व. भरत बरगाह ने किया देहदान
बिलासपुर।बिल्हा तहसील के मोहतरा गांव के पूर्व मालगुजार, स्व. भरत लाल बरगाह ने एक मिसाल कायम करते हुए मरणोपरांत देहदान का संकल्प लिया था, जिसे उनके निधन के बाद उनके परिवार ने पूरा किया। 79 वर्ष की आयु में 12 नवम्बर को उनका देहांत हुआ, और उनकी अंतिम इच्छा का सम्मान करते हुए उनके पुत्रों डेहरा राम बरगाह और श्री संतोष बरगाह ने उनके पार्थिव शरीर को सिम्स हॉस्पिटल, बिलासपुर को दान करने की घोषणा की। यह देहदान न केवल जनकल्याण की दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि समाज के लिए एक प्रेरणा और अनुकरणीय उदाहरण भी प्रस्तुत करता है।
*भजन और रामायण गायन में किया जीवन समर्पित*
स्व. भरत लाल बरगाह ने 2023 में ही यह निर्णय लिया था कि उनका शरीर मृत्यु के बाद चिकित्सा शोध और जनकल्याण के लिए दान कर दिया जाए। इस संकल्प के पीछे उनकी सोच यह थी कि उनके देहदान से किसी जरूरतमंद को चिकित्सा क्षेत्र में लाभ मिल सके और चिकित्सकों को शोध कार्य में सहायता प्राप्त हो। समाज में जागरूकता लाने और अपने पारिवारिक मूल्यों का पालन करते हुए उन्होंने अपने जीवन में कई अन्य समाजसेवी कार्य भी किए, परन्तु देहदान का उनका यह निर्णय उनके धार्मिक और सामाजिक दृष्टिकोण का प्रतीक बन गया।स्व. भरत लाल बरगाह धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे और उन्होंने अपना अधिकतर जीवन धार्मिक कार्यों में, विशेषकर भजन और रामायण गायन में व्यतीत किया। उनके परिजन बताते हैं कि उनके विचारों में सदैव मानवता की सेवा और समाज की भलाई का भाव सर्वोपरि रहा है। देहदान जैसा महत्वपूर्ण निर्णय उनके उसी विचारधारा का परिणाम है। उनके इस निर्णय को उनके परिवार ने आदरपूर्वक पूरा किया, जो इस बात का संकेत है कि उनके पारिवारिक मूल्यों में सेवा, त्याग, और जनकल्याण का विशेष स्थान है।स्व. भरत लाल बरगाह का देहदान न केवल चिकित्सा शोध के क्षेत्र में सहायक होगा, बल्कि उनके इस कार्य से समाज में देहदान के प्रति जागरूकता भी बढ़ेगी। ऐसे अनुकरणीय कार्य समाज को नई दिशा देने में सहायक होते हैं और भविष्य की पीढ़ी के लिए प्रेरणा स्रोत बनते हैं।
क्या काम आता है मानव शरीर
मेडिकल कॉलेजों को शरीर (बॉडी) की आवश्यकता कई महत्वपूर्ण कारणों से होती है, जो चिकित्सा शिक्षा, शोध, और चिकित्सा विज्ञान की उन्नति के लिए आवश्यक हैं।
- चिकित्सा शिक्षा के लिए प्रयोग: मेडिकल कॉलेजों में छात्रों को शरीर की संरचना और कार्यप्रणाली को समझना बेहद जरूरी होता है। मानव शरीर के विभिन्न अंगों, ऊतकों, और तंत्रों का व्यावहारिक ज्ञान हासिल करने के लिए, छात्रों को शरीर पर सीधा अभ्यास करने का मौका मिलता है। पाठ्यपुस्तकों और मॉडलों के साथ-साथ असली शरीर पर अध्ययन करने से उन्हें अधिक सटीक और व्यावहारिक समझ मिलती है, जो उनकी शिक्षा के लिए अनिवार्य है।
- शल्य चिकित्सा का अभ्यास: मेडिकल छात्रों को सर्जरी और अन्य चिकित्सा प्रक्रियाओं में कौशल हासिल करने के लिए असली शरीर पर अभ्यास की आवश्यकता होती है। इस अनुभव से वे मानव शरीर के जटिल तंत्र, नसों, रक्त वाहिकाओं, और अंगों के स्थान और कार्य को बेहतर तरीके से समझ पाते हैं, जिससे उनकी शल्य चिकित्सा क्षमता में सुधार होता है।
- नवीन अनुसंधान एवं अध्ययन: शरीरों का उपयोग अनुसंधान और शोध कार्यों में भी किया जाता है। मेडिकल कॉलेजों में शोधकर्ता और वैज्ञानिक नई बीमारियों, उनके कारणों, और संभावित उपचारों के लिए प्रयोग करते हैं। असली शरीरों पर शोध से नए उपचार और तकनीकों का विकास किया जा सकता है, जो भविष्य में स्वास्थ्य सेवा में सुधार लाने में सहायक होती हैं।
- चिकित्सीय नैतिकता और संवेदनशीलता का विकास: शरीरों पर काम करने से मेडिकल छात्रों में न केवल तकनीकी कौशल विकसित होते हैं, बल्कि उनके भीतर संवेदनशीलता और नैतिकता का भी विकास होता है। उन्हें शरीर को आदर और सम्मान के साथ देखने और व्यवहार करने का महत्व समझ में आता है, जिससे भविष्य में वे अपने मरीजों का इलाज भी संवेदनशीलता से कर सकें।
- आधुनिक चिकित्सा उपकरणों का परीक्षण: नई चिकित्सा तकनीकों और उपकरणों के विकास के लिए भी शरीरों की आवश्यकता होती है। इन उपकरणों का असली मानव शरीर पर परीक्षण करके उनकी कार्यप्रणाली, उपयोगिता और सीमाओं का आकलन किया जा सकता है, जो चिकित्सा में सुधार लाने में मदद करता है।