00 रावत नाच के लिए गड़वा बाजा की बुकिंग, शनिचरी बाजार में लगती रही बोली
बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के शहर एवं गांव की गलियों में जइसे मालिक लिए दिए, तइसे देबो आशीषर….., पूजा परत पुजेरी के संगी, धोवा चांउर चढ़ाए….., सब गोपियन के बीच बइठे, छेड़े प्रीति के तान….., तुलसी के चौरा अंगना, पीपर तरिया पार…., मोटर गाड़भ् के धुंवा, करय हाल बेहाल…., सदा भवानी भवानी दाहिनी, सन्मुख रहे गनेस हो, पांच देव रक्छा करंय…..,एही जनम अउ जनम, फरे जनम जनम अहीर हो, चिखला कांदा मं गड़े, दूध मं भींजे सरीर हो….., राउत-राउत का कइथव संगी, राउतगगाय चरईया रे, दुरपति के लाज रखइया, बंसीवाला कन्हइया रे….. जैसे एक से बढ़कर एक दोहों के साथ यदुवंशियांे ने लोगों का शुभाशीष और सामाजिक संदेश गड़वाबाजा की धुन पर पर अब सुनाई देगा। छत्तीसगढ़ी लोक संस्कृति की सतरंगी छाटा भी खूब बिखरेगी। इसके लिए मंगलवार को शनिचरी बाजार में गढ़वा बाजार दल की बुकिंग हुई। इस बार दाल का रेट ₹100000 से भी ऊपर जाने का दावा किया है। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में आयोजित होने वाले “रावत नाच” महोत्सव की चर्चा भी शुरू हो गई है, जो एक पारंपरिक सांस्कृतिक आयोजन है। रावत नाच महोत्सव विशेष रूप से छत्तीसगढ़ के यादव समुदाय से जुड़ा है, जो भगवान कृष्ण और उनके जीवन से प्रेरित होकर मनाया जाता है। हर साल इस महोत्सव में हजारों की संख्या में लोग भाग लेते हैं।
महोत्सव का इतिहास:
रावत नाच महोत्सव की शुरुआत वर्ष 1978 में हुई थी। 1985 में इसे राज्य स्तरीय महोत्सव का दर्जा मिला, जिसके बाद से यह लगातार हर साल मनाया जा रहा है। इस महोत्सव में बड़ी संख्या में कलाकार हिस्सा लेते हैं और इसे देखने के लिए लाखों लोग पहुंचते हैं।
- महत्वपूर्ण पहचान: यह महोत्सव यादव समुदाय के पारंपरिक नृत्य के रूप में राज्य में एक विशेष पहचान रखता है। इसे विशेष रूप से भगवान कृष्ण के प्रति श्रद्धा और उनकी लीलाओं की याद में आयोजित किया जाता है। इस नृत्य में रंगीन परिधानों में सज-धज कर कलाकार कृष्ण की लीलाओं का मंचन करते हैं।
- पुरस्कार और सम्मान: रावत नाच महोत्सव में प्रतिभागियों को विभिन्न पुरस्कारों से नवाजा जाता है। इसमें शामिल नर्तक अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं और दर्शकों के बीच अपनी छाप छोड़ते हैं
- स्थानीय और सांस्कृतिक महत्व: रावत नाच महोत्सव छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसे राज्य में बड़े उत्साह और भक्ति भाव से मनाया जाता है।