बिलासपुर । छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में आंवला नवमी का पर्व बड़े उत्साह और धार्मिक भावनाओं के साथ मनाया जा रहा है। इस अवसर पर शहर की कई जगहों पर पूजा-पाठ और भव्य आयोजनों का आयोजन हुआ। इस पर्व में आंवले के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि इसे भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है। महिलाओं ने सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र पहनकर आंवले के पेड़ के नीचे विधि-विधान से पूजा की। इसके बाद पेड़ की परिक्रमा करते हुए प्रसाद वितरण किया गया।
बिलासपुर में कंपनी गार्डन समेत कई जगहों पर सामूहिक भोज का आयोजन भी किया गया, जहां परिवारजन और बच्चे पेड़ के नीचे बैठकर भोजन का आनंद लेते दिखाई दिए। पूजा में शामिल महिलाओं ने भगवान विष्णु से परिवार की सुख-समृद्धि और संतान सुख की कामना की। यह आयोजन न केवल धार्मिक भावनाओं को बढ़ावा देता है बल्कि परिवारों को प्रकृति के करीब लाने और उन्हें आंवले के औषधीय गुणों से अवगत कराने का एक अवसर भी है।
इस अवसर पर पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दिया गया, जिसमें आयोजकों ने आंवले के पौधे लगाने की अपील की। लोगों ने आंवले के पेड़ का महत्व बताते हुए इसे पर्यावरण के लिए लाभकारी बताया और अधिक से अधिक वृक्षारोपण की आवश्यकता पर बल दिया।
आंवला नवमी का महत्त्व और परंपरा
आंवला नवमी का पर्व, जिसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है, विशेष रूप से उत्तर भारत में धार्मिक उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आता है और हिंदू धर्म में इसे बेहद पुण्यदायी माना गया है। इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि मान्यता है कि इसमें भगवान विष्णु और लक्ष्मी का वास होता है। ऐसा माना जाता है कि आंवला नवमी के दिन पूजा करने और आंवले का सेवन करने से व्यक्ति के सारे पाप धुल जाते हैं और उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।
पूजा की विधि और परंपराएँ
आंवला नवमी पर आंवले के पेड़ की पूजा करने की परंपरा है। महिलाएं इस दिन सुबह स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करती हैं और पूजा की थाली सजाकर आंवले के पेड़ के नीचे जाकर उसकी पूजा करती हैं। पूजा में जल, रोली, अक्षत, फूल, फल, मिठाई और आंवला शामिल होता है। पेड़ की परिक्रमा करने के बाद पेड़ की छांव में बैठकर भोजन करना भी पुण्य का कार्य माना जाता है। कई परिवार इस दिन सामूहिक भोजन भी करते हैं, जिसे ‘भोजन प्रसादी’ कहा जाता है।
धार्मिक और स्वास्थ्य लाभ
आंवले को आयुर्वेद में एक औषधीय फल माना गया है। इसके सेवन से शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। धार्मिक दृष्टि से यह पूजा जीवन में सुख, समृद्धि और स्वास्थ्य की कामना के साथ की जाती है। यह पर्व न केवल धार्मिक भावनाओं को मजबूत करता है, बल्कि पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी देता है।