00 एशिया के सबसे बड़े स्थाई छठ घाट तोरवा में व्रतियों के साथ हजारों की संख्या में श्रद्धालु रहे मौजूद
बिलासपुर।छठ पूजा का चौथा दिन, जिसे “उषा अर्घ्य” का दिन कहते हैं, छठ महापर्व का सबसे अंतिम और महत्वपूर्ण दिन होता है। इस दिन छत्तीसगढ़ के बिलासपुर स्थित एशिया के सबसे बड़े 7 एकड़ में फैला स्थाई छठ घाट तोरवा में आज उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया गया। इसके साथ ही छठ पूजा का यह चरण सभी कठिन उपवासों और पूजा-अनुष्ठानों का समापन करता है, जिसमें चार दिन तक लगातार व्रत और पूजा शामिल है। इस दौरान नगर विधायक अमर अग्रवाल, पूजा समिति के VN झा, प्रवीण झा, sp सिंह, धर्मेंद्र दास, रोशन सिंह समेत हजारों की संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।
ये रही प्रमुख गतिविधियाँ
- प्रातःकालीन अर्घ्य
चौथे दिन सूर्योदय से पहले ही व्रती अपने परिवार और अन्य भक्तों के साथ नदी, तालाब या घाटों पर पहुंच गए थे। वहाँ सभी महिलाएँ और पुरुष जल में खड़े होकर उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पितकिया। इस अर्घ्य को “उषा अर्घ्य” कहते हैं, जो अंधकार के बाद नवजीवन और उर्जा का प्रतीक है। मान्यता है कि सूर्य देव को उषा अर्घ्य देने से संतान सुख, समृद्धि और दीर्घायु की प्राप्ति होती है। - छठी मैया की पूजा और आशीर्वाद
उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद भक्तजन ने छठी मैया की पूजा की। छठी मैया को बच्चों की रक्षा, स्वास्थ्य और परिवार की सुख-शांति का प्रतीक माना जाता है। छठ पूजा की खास बात यह है कि यह पूरी तरह से प्रकृति और सूर्य उपासना पर आधारित होता है, और इसमें कोई मूर्ति पूजा शामिल नहीं होती है। - प्रसाद का वितरण
छठ पूजा में प्रसाद का विशेष महत्व होता है। ठेकुआ, फल, नारियल, और अन्य प्रसाद, जिन्हें तीसरे दिन शाम को संध्या अर्घ्य में भी अर्पित किया गया था, चौथे दिन भी उगते सूर्य के अर्घ्य में शामिल होते हैं। इसके बाद भक्त एक-दूसरे के साथ प्रसाद बाँटते हैं, जो कि छठ पूजा के सामुदायिक और भाईचारे के भावना को मजबूत करता है। - व्रत का पारण
चार दिन के कठोर उपवास का अंत इस दिन “पारण” के साथ होता है। चौथे दिन अर्घ्य अर्पण और पूजा के बाद, व्रती अपने घर लौटते हैं और फिर विधिपूर्वक व्रत खोलते हैं। पारण के लिए सबसे पहले प्रसाद ग्रहण किया जाता है, जो ठेकुआ, गुड़ की खीर, फल, और अन्य पौष्टिक आहार होते हैं। यह पारंपरिक और सात्विक भोजन उपवास के दौरान खोई हुई ऊर्जा को पुनःस्थापित करने में मदद करता है।
चौथे दिन का आध्यात्मिक महत्व
छठ पूजा का चौथा दिन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि आस्था और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का पर्व भी है। उगते हुए सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने का तात्पर्य जीवन में नई शुरुआत, ऊर्जा, और सकारात्मकता का स्वागत करना है। सूर्य देवता और छठी मैया की उपासना से जीवन में संतुलन और समृद्धि प्राप्त होती है, और इस पूजा से समाज में सामुदायिक भावना को भी बल मिलता है।
यह दिन हजारों श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है, क्योंकि यह प्रकृति, सूर्य और परिवार की सुख-समृद्धि के लिए की गई चार दिनों की साधना का पूर्णता का प्रतीक है।