00 अरपा नदी पर बने एशिया के सबसे बड़े स्थाई छठ घाट तोरवा में लगा मेला
बिलासपुर । छठ महापर्व के तीसरे दिन का शुभ अवसर श्रद्धालुओं के लिए विशेष महत्व रखता है। आज संध्या में डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करने के लिए हजारों श्रद्धालु और व्रती अरपा नदी के किनारे स्थित तोरवा छठ घाट में एकत्र हुए। व्रतियों ने अपने परिवार और समाज के कल्याण के लिए डूबते सूर्य को नमन कर आशीर्वाद मांगा। इस दौरान घाट में मेले जैसा माहौल था। पर्व के दौरान करने वाली भीड़ को देखते हुए सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए थे। इसके अलावा पूजा समिति के पदाधिकारी और कार्यकर्ता भी पूरे समय व्यवस्था बनाने में जुटे रहे। इसमें प्रमुख रूप से पूजा समिति के प्रमुख वीएन झा, प्रवीण झा, धर्मेंद्र दास, रोशन सिंह, अभय नारायण राय आदि शामिल थे।
डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की परंपरा
महापर्व छठ में डूबते सूर्य को अर्घ्य देने की यह परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही है। इसे संध्या अर्घ्य भी कहा जाता है, जो छठ पूजा का प्रमुख भाग है। इस अवसर पर व्रतधारी महिलाएं, रंगीन परिधान पहनकर, सिर पर पूजा की सामग्री लेकर नदी किनारे सज-धज कर पहुंचती हैं। पूजा की थाली में ठेकुआ, फलों, गन्ना, और पूजा के अन्य सामान को सजाकर व्रती अपने परिवार की खुशहाली और समृद्धि की कामना करते हैं।
आस्था और सामूहिकता का अनूठा संगम
संध्या अर्घ्य का दृश्य हर वर्ष अपने आप में विशेष होता है, जहां हर उम्र के लोग, चाहे बच्चे हों या बुजुर्ग अरपा के छठ घाट तट पर एकत्रित होते हैं। सूर्यास्त के समय, जब सूर्य अपनी अंतिम किरणें बिखेर रहा होता है, तब श्रद्धालुओं की सामूहिकता से घाटों पर एक मनमोहक दृश्य उत्पन्न होता है।
महापर्व का पर्यावरण और सामुदायिक पहलू
छठ महापर्व का यह पर्व पर्यावरण और सामुदायिकता का अनूठा संगम भी है। इस दौरान घाटों को साफ-सुथरा रखने की कोशिश की जाती है। कई जगहों पर नगर निगम और स्वयंसेवी संस्थाएं मिलकर घाटों की सफाई करते हैं ताकि श्रद्धालुओं को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो।
आज का अनुष्ठान
कल छठ महापर्व का चौथा और अंतिम दिन है, जब उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित कर व्रत को संपन्न किया जाएगा।