अरपा नदी में स्थित तोरवा छठ घाट आकर्षण का बना हुआ है केंद्र
बिलासपुर। आज छठ पूजा के चार दिवसीय अनुष्ठान का दूसरा दिन खरना है, जो व्रती (व्रत रखने वाले) श्रद्धालुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन भक्तगण दिनभर निर्जला उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद विशेष प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोलते हैं। खरना के साथ ही चार दिवसीय छठ महापर्व का मुख्य अनुष्ठानिक हिस्सा शुरू हो जाता है, जिसमें व्रतियों को 36 घंटे का कठिन निर्जला उपवास रखना होता है। अरपा नदी पर स्थित तोरवा छठ घाट इन दोनों आकर्षण का केंद्र बना हुआ है।
खरना की विशेष पूजा और प्रसाद
खरना के दिन शाम को भक्त भगवान सूर्य को अर्घ्य देने की तैयारी करते हैं। इसके बाद प्रसाद बनाने की प्रक्रिया होती है, जिसमें आमतौर पर गुड़ की खीर, गेहूं की रोटी और केले का विशेष महत्व होता है। प्रसाद को पूरी स्वच्छता के साथ बनाया जाता है, और व्रती इसे ग्रहण करते हैं। इस अनुष्ठान के दौरान, परिवार और समुदाय के लोग भी प्रसाद में शामिल होकर आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
खरना की धार्मिक और आध्यात्मिक महत्वता
खरना अनुष्ठान का धार्मिक महत्व यह है कि यह शुद्धता, त्याग और समर्पण का प्रतीक है। इस दिन किए गए उपवास और व्रत के द्वारा व्रती अपने तन, मन और आत्मा की शुद्धि करते हैं। खरना के साथ ही व्रती अगली सुबह उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने की तैयारी करते हैं, जो छठ पूजा का सबसे महत्वपूर्ण दिन होता है।
आध्यात्मिक लाभ और समाज में एकता का प्रतीक
खरना न केवल आध्यात्मिक शांति और पवित्रता का प्रतीक है, बल्कि यह समाज में एकता और सांस्कृतिक समर्पण का भी प्रतीक है। इस दिन, परिवार और समुदाय के लोग एक साथ मिलकर प्रसाद ग्रहण करते हैं और अपने रिश्तों को सुदृढ़ करते हैं।
छठ पूजा का खरना अनुष्ठान इस बात की याद दिलाता है कि भक्ति और शुद्धता से ही जीवन में सकारात्मकता आती है।
खरना का महत्व और उसकी पवित्रता
छठ पूजा, जो मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, और उत्तर प्रदेश में मनाई जाती है, सूर्य देवता और छठी मैया को समर्पित एक प्रमुख पर्व है। चार दिवसीय इस पूजा का दूसरा दिन विशेष रूप से खरना के रूप में जाना जाता है। खरना का दिन बहुत ही पवित्र और महत्वपूर्ण होता है, और इसे विशेष पूजा और परहेज के साथ मनाया जाता है। खरना पर भक्त उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद प्रसाद ग्रहण करते हैं, जो कि शुद्धता और समर्पण का प्रतीक होता है।
खरना का महत्व
खरना का अर्थ है “पवित्रता और शुद्धता की ओर कदम”। इस दिन व्रती (पूजारी) पूरे दिन निर्जला उपवास रखते हैं और शाम को सूर्यास्त के समय विशेष प्रसाद तैयार करते हैं। खरना का प्रसाद शुद्धता और सादगी का प्रतीक है। इसे तैयार करने के लिए सिर्फ गुड़ की खीर, रोटी, और केले का उपयोग होता है। प्रसाद की यह सरलता बताती है कि छठ पूजा में भौतिक वस्त्रों और व्यंजनों से अधिक शुद्धता और भक्ति का महत्व है।
खरना की पूजा में विशेष ध्यान इस बात पर दिया जाता है कि प्रसाद पूरी तरह से स्वच्छ और पवित्र तरीके से तैयार हो। प्रसाद के रूप में दी गई गुड़ और चावल की खीर और गेहूं के आटे की रोटी में सूर्य देवता और छठी मैया का आशीर्वाद समाहित माना जाता है। व्रती और परिवार के सदस्य इस प्रसाद को ग्रहण करते हैं और फिर अगले दिन के निर्जला उपवास के लिए तैयार होते हैं।
आध्यात्मिक और सांस्कृतिक प्रभाव
छठ पूजा की परंपराओं में प्रकृति के प्रति आभार प्रकट करना भी शामिल है। खरना के दिन लोग पूरी शुद्धता और सात्विकता के साथ प्रसाद ग्रहण करते हैं, जो उनके शरीर और मन को शुद्ध करता है। यह परंपरा जीवन में अनुशासन और संयम का प्रतीक मानी जाती है।
आधुनिक समाज में खरना
वर्तमान में जहां जीवन की भागदौड़ और मानसिक तनाव है, वहां खरना की साधना लोगों को आंतरिक शांति और अनुशासन की भावना प्रदान करती है। यह एक ऐसा अवसर है जब लोग अपनी संस्कृति और परंपरा से जुड़ते हैं, जिससे सामाजिक एकता और सहयोग का भाव बढ़ता है।
छठ पूजा का खरना इस संदेश को प्रसारित करता है कि आत्म-नियंत्रण और पवित्रता से ही जीवन में संतोष प्राप्त होता है। यह पर्व न केवल एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक जागरूकता का प्रतीक भी है।