बिलासपुर: बर्खास्त बीएड सहायक शिक्षकों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन पर प्रशासन की सख्ती ने एक नई बहस छेड़ दी है। शुक्रवार को न्यायधानी बिलासपुर में शिक्षकों ने अपनी मांगों को लेकर संघर्ष रैली निकाली, जिसके बाद प्रशासन ने 29 मार्च 2025 को एक आदेश जारी किया। इस आदेश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संभावित यात्रा के दौरान विरोध प्रदर्शन की संभावना को देखते हुए पुलिस अधिकारियों को सतर्क रहने और प्रदर्शनकारियों की जानकारी संकलित करने के निर्देश दिए गए हैं।
प्रशासन की इस कार्रवाई पर सवाल उठने लगे हैं कि क्या यह शिक्षकों की आवाज दबाने की कोशिश है? बर्खास्त शिक्षकों का यह प्रदर्शन संकेत देता है कि उनकी मांगें लंबे समय से अनसुनी रही हैं। यदि प्रशासन उनकी समस्याओं के समाधान की बजाय केवल निगरानी और नियंत्रण पर ध्यान दे रहा है, तो यह उनकी आवाज को कुचलने का संकेत हो सकता है।
100 दिनों से अधिक समय से जारी प्रदर्शन
बर्खास्त बीएड सहायक शिक्षक अपनी मांगों को लेकर पिछले 100 दिनों से भी अधिक समय से धरना स्थल पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे हैं। वे सरकार से समायोजन की मांग कर रहे हैं ताकि उनकी नौकरी बहाल की जा सके। हालांकि, प्रशासन उनके इस आंदोलन को सुरक्षा के लिए खतरा बताते हुए रोकने की कोशिश कर रहा है। प्रदर्शनकारियों की जानकारी एकत्र करना, उन पर नजर रखना और उनकी गतिविधियों को सीमित करना प्रशासन की मंशा पर सवाल खड़े करता है।
प्रशासन के आदेश में क्या कहा गया?
30 मार्च 2025 को जारी आधिकारिक आदेश में साफ कहा गया है कि प्रधानमंत्री की संभावित यात्रा को देखते हुए प्रदर्शनकारियों पर नजर रखी जाए। आदेश में प्रदर्शनकारियों के नाम, मोबाइल नंबर, कुल संख्या और उनकी गतिविधियों की जानकारी एकत्र करने के निर्देश दिए गए हैं। साथ ही यह भी संभावना जताई गई है कि उन्हें हिरासत में लिया जा सकता है या उन्हें उस क्षेत्र में प्रवेश करने से रोका जा सकता है जहां प्रधानमंत्री का दौरा प्रस्तावित है।
शिक्षकों ने प्रशासन पर लगाया दमनकारी नीति अपनाने का आरोप
शिक्षकों का कहना है कि प्रशासन लगातार उनकी आवाज दबाने की कोशिश कर रहा है। इससे पहले भी जब उन्होंने प्रदर्शन किया, तो लाठीचार्ज, गिरफ्तारी और अनदेखी का सामना करना पड़ा था। अब नए आदेश के जरिए सरकार एक और दमनकारी कदम उठा रही है। उनका आरोप है कि लोकतंत्र में प्रदर्शन करना उनका अधिकार है, लेकिन प्रशासन इसे सुरक्षा का मुद्दा बनाकर उनकी आवाज को रोकने का प्रयास कर रहा है।
संविधान के अनुच्छेद 19 का उल्लंघन?
संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत सभी नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने का अधिकार है। हालांकि, यह अधिकार कुछ शर्तों के अधीन होता है। यदि प्रशासन अनुचित तरीके से प्रदर्शनकारियों पर नजर रखता है, तो यह उनके लोकतांत्रिक अधिकारों का उल्लंघन माना जा सकता है।
कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि यदि किसी प्रदर्शन से सीधे तौर पर कानून-व्यवस्था को कोई खतरा नहीं है, तो उसे रोकना या उस पर सख्ती बरतना अवैध हो सकता है। यह मामला भी कुछ ऐसा ही प्रतीत होता है, जहां शिक्षकों की शांतिपूर्ण मांगों को दबाने के लिए उन पर प्रशासनिक नियंत्रण बढ़ाया जा रहा है।
राजनीतिक दलों और संगठनों की प्रतिक्रिया
इस मुद्दे पर राजनीतिक दलों और सामाजिक संगठनों ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी है। विपक्षी दलों ने इसे सरकार की असंवेदनशीलता करार दिया और कहा कि शिक्षकों की मांगों को नजरअंदाज करना और उनकी आवाज दबाने की कोशिश करना लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। कुछ संगठनों ने प्रशासन के इस कदम की निंदा करते हुए इसे अलोकतांत्रिक बताया और शिक्षकों के साथ खड़े होने की बात कही।
क्या हो सकता है आगे?
शिक्षकों ने साफ कर दिया है कि वे अपनी मांगों को लेकर पीछे नहीं हटेंगे और अपना प्रदर्शन जारी रखेंगे। प्रशासन के इस कदम के बाद उनके आंदोलन को और अधिक समर्थन मिल सकता है। यदि प्रशासन ने जल्द ही शिक्षकों की मांगों पर ध्यान नहीं दिया, तो यह मामला और भी बड़ा हो सकता है।
आने वाले दिनों में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार और प्रशासन इस मुद्दे पर क्या रुख अपनाते हैं। क्या वे शिक्षकों के साथ बातचीत का रास्ता अपनाएंगे, या फिर इस निगरानी और दबाव की नीति को जारी रखेंगे।