00 मंदिर को भव्य स्वरूप देने की तैयारी शुरू

बिलासपुर। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में स्थित ऐतिहासिक महामाया मंदिर को भव्य और आधुनिक स्वरूप देने की तैयारी शुरू हो गई है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर की तर्ज पर विकसित की जाने वाली इस परियोजना का उद्देश्य मंदिर के धार्मिक, सांस्कृतिक और पर्यटन महत्व को नई ऊंचाई पर ले जाना है। केंद्रीय राज्य मंत्री और बिलासपुर के सांसद तोखन साहू ने पिछले दिनों अधिकारियों के साथ इस महत्वाकांक्षी योजना पर बैठक की थी। इस मुद्दे को लेकर 6 जनवरी को श्री साहू मुख्यमंत्री विष्णु देव साय से मुलाकात करने राजधानी रायपुर जाएंगे। इसकी जानकारी उनके प्रोटोकॉल कार्यक्रम में जारी की गई है।

परियोजना की विशेषताएं
1. मंदिर परिसर का विस्तार:
मंदिर परिसर को विस्तारित करते हुए श्रद्धालुओं के लिए बेहतर सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।
2. पर्यटक-अनुकूल ढांचा:
मंदिर तक पहुंचने के लिए सड़क और रेल संपर्क को बेहतर बनाया जाएगा। साथ ही, मंदिर के पास आधुनिक पार्किंग और पर्यटक सूचना केंद्र बनाए जाएंगे।
3. धार्मिक और सांस्कृतिक संरक्षण:
मंदिर के इतिहास और छत्तीसगढ़ की परंपराओं को संरक्षित करने के लिए संग्रहालय और सांस्कृतिक केंद्र की स्थापना होगी।
4. आधुनिक तकनीक का उपयोग:
इस परियोजना के लिए केंद्रीय एजेंसी द्वारा विस्तृत कार्ययोजना तैयार की जा रही है, जिसमें मंदिर परिसर का विस्तार, श्रद्धालुओं के लिए आधुनिक सुविधाएं, और क्षेत्रीय पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए बुनियादी ढांचे का विकास शामिल है।
पर्यटन के क्षेत्र में अग्रसर
इस परियोजना का फोकस मंदिर को धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान के साथ एक पर्यटन केंद्र के रूप में विकसित करना है। इसमें स्मार्ट दर्शन सुविधाएं, हरित ऊर्जा, और क्षेत्रीय कला एवं संस्कृति के संरक्षण के लिए विशेष उपाय शामिल होंगे। साहू ने आश्वासन दिया कि योजना पर काम जल्द शुरू होगा, जो छत्तीसगढ़ के गौरव को एक नई पहचान देगा।
क्या है महामाया कॉरिडोर योजना
महामाया कॉरिडोर योजना का उद्देश्य छत्तीसगढ़ के महामाया मंदिर को न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक और पर्यटन के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित करना है। इस परियोजना में मंदिर परिसर और इसके आस-पास के क्षेत्र को आधुनिक सुविधाओं और सांस्कृतिक आकर्षणों से सुसज्जित किया जाएगा।
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योजना के अंतर्गत होने वाले प्रमुख कार्य
1. आधारभूत संरचना का विकास
सड़क और परिवहन संपर्क:
मंदिर तक पहुँचने के लिए बेहतर सड़क और पार्किंग की सुविधा। इसके अलावा, मंदिर को राष्ट्रीय राजमार्ग और रेलवे स्टेशन से जोड़ने के लिए विशेष योजनाएं।
मंदिर परिसर का विस्तार:
मंदिर परिसर का विस्तार कर श्रद्धालुओं की क्षमता को बढ़ाना और भीड़ प्रबंधन के लिए विशेष सुविधाएं।
2. आधुनिक सुविधाओं का समावेश
डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर:
श्रद्धालुओं के लिए ई-दर्शन पोर्टल, मोबाइल ऐप और वर्चुअल टूर की सुविधा।
स्मार्ट टिकटिंग और क्यू मैनेजमेंट:
ऑनलाइन बुकिंग और डिजिटल टिकटिंग की सुविधा।
सुरक्षा और आपातकालीन सेवाएं:
सीसीटीवी निगरानी, मेडिकल इमरजेंसी यूनिट और सुरक्षा कर्मियों की तैनाती।
3. सांस्कृतिक विरासत का संरक्षण
संग्रहालय और सांस्कृतिक केंद्र:
मंदिर के इतिहास और धार्मिक महत्व को प्रदर्शित करने के लिए एक संग्रहालय का निर्माण।
स्थानीय परंपराओं का प्रदर्शन:
स्थानीय कला, शिल्प और संगीत को बढ़ावा देने के लिए नियमित उत्सव और प्रदर्शनियां।
4. पर्यावरणीय अनुकूलता
हरित परिसर:
मंदिर परिसर में हरियाली बढ़ाने और स्वच्छता बनाए रखने के लिए विशेष कदम।
सौर ऊर्जा:
परिसर में सौर ऊर्जा का उपयोग कर ऊर्जा संरक्षण।
जल संरक्षण:
वर्षा जल संचयन और अन्य जल संरक्षण उपाय।
5. पर्यटक केंद्र और सुविधाएं
धर्मशालाएं और होटल:
श्रद्धालुओं के लिए सस्ती और आरामदायक ठहरने की व्यवस्था।
भोजनालय और कैफेटेरिया:
क्षेत्रीय व्यंजनों के साथ हाईजेनिक फूड कोर्ट।
गाइड और इंफॉर्मेशन सेंटर:
पर्यटकों के लिए प्रशिक्षित गाइड और सूचना केंद्र।
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योजना को लागू करने की प्रक्रिया
1. कार्य योजना तैयार करना:
विशेषज्ञों की मदद से परियोजना का ब्लू-प्रिंट तैयार करना।
ऐतिहासिक, धार्मिक और सांस्कृतिक पहलुओं का अध्ययन।
2. वित्तीय प्रबंधन:
केंद्र और राज्य सरकार की वित्तीय सहायता।
CSR (कॉर्पोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) और सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) के माध्यम से धन जुटाना।
3. अधिकारियों की नियुक्ति:
एक विशेष समिति का गठन जो परियोजना की निगरानी करेगी।
समय-सीमा सुनिश्चित करने के लिए चरणबद्ध कार्य योजना।
4. स्थानीय समुदाय की भागीदारी:
स्थानीय नागरिकों और संगठनों को शामिल कर योजना को समावेशी बनाना।
रोजगार और उद्यमशीलता को बढ़ावा देना।
5. पर्यटन प्रचार:
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रचार-प्रसार।
डिजिटल और सोशल मीडिया के माध्यम से विशेष अभियानों का संचालन।
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योजना की संभावित समय-सीमा
पहला चरण (0-12 महीने): आधारभूत संरचना और डिजिटल सुविधाओं की स्थापना।
दूसरा चरण (1-2 वर्ष): सांस्कृतिक और पर्यावरणीय परियोजनाओं का क्रियान्वयन।
तीसरा चरण (2-3 वर्ष): परियोजना का पूर्ण कार्यान्वयन और राष्ट्रीय स्तर पर उद्घाटन।