बलौदा बाजार। 10 अक्टूबर 2024 को छत्तीसगढ़ में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) के प्रदेश अध्यक्ष अमित जोगी ने बलौदा बाजार जिला जेल का दौरा किया। यह दौरा उस अग्निकांड से जुड़ा है, जो 10 जून 2024 को हुआ था और जिसके परिणामस्वरूप कई निर्दोष व्यक्तियों को जेल में बंद कर दिया गया। इस घटना पर अपनी कानूनी विशेषज्ञता का उपयोग करते हुए अमित जोगी ने पुलिस द्वारा दाखिल किए गए 14820 पन्नों के 13 अभियोग पत्रों की गंभीर आलोचना की और इसे फर्जी, सांप्रदायिक राजनीति से प्रेरित करार दिया। जोगी ने इन अभियोग पत्रों से जुड़े 11 प्रमुख खुलासे किए, जो पुलिस की विवेचना की कमियों को उजागर करते हैं।
विवेचना की खामियाँ और अमित जोगी के खुलासे
1. अज्ञात से नामजद अभियुक्त बनने की प्रक्रिया
10 जून 2024 को रात 9:00 बजे पुलिस ने एक FIR दर्ज की, जिसमें अज्ञात व्यक्तियों को दोषी ठहराया गया था। लेकिन केवल आधे घंटे के भीतर ही कुछ व्यक्तियों, विशेष रूप से किशोर नौरंगे और 10 अन्य को नामजद अभियुक्त बना दिया गया, जो कि पुलिस की विवेचना पर सवाल खड़ा करता है।
2. एक ही घटना पर कई FIR
इस घटना के बाद, पुलिस ने 13 अलग-अलग FIRs दर्ज कीं, जिनमें कुल 356 लोगों के खिलाफ आरोप लगाए गए। इनमें से 186 आरोपियों को न्यायिक हिरासत में भेजा गया है, जबकि अन्य विभिन्न जेलों में निरुद्ध हैं।
3. आरोप पत्र की देरी और जमानत के अधिकार
एक विशिष्ट FIR (386/2024) में कुछ आरोपियों के खिलाफ अभी तक आरोप पत्र दाखिल नहीं किया गया है। फिर भी, जोगी का कहना है कि अन्य आरोपियों को भी जमानत का लाभ मिलना चाहिए।
4. कार्यक्रम का आयोजन और दोषारोपण
दशहरा मैदान में जनसभा का आवेदन आरोपियों द्वारा किया गया बताया गया है, जबकि आवेदन वास्तव में भाजपा के नेता द्वारा किया गया था। इससे यह स्पष्ट होता है कि सरकार विरोधियों को निशाना बनाया जा रहा है।
5. बैरिकेडिंग की फर्जी व्यवस्था
पुलिस द्वारा दर्शाए गए सुरक्षा प्रबंध वास्तविकता से मेल नहीं खाते। यह दिखाता है कि विवेचना में तथ्यों को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया।
6. CCTV फुटेज का अभाव
34 में से केवल 2 CCTV कैमरे काम कर रहे थे, जिनकी फुटेज में भी कोई अभियुक्त किसी आपराधिक कृत्य में संलिप्त नहीं दिख रहा है।
7. पुलिस कर्मियों की चोटें
आरोप पत्र में 9 पुलिस कर्मियों के घायल होने की बात कही गई है, लेकिन मेडिकल रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि ये मामूली चोटें थीं, जो जानलेवा हमले की परिभाषा में नहीं आतीं।
8. संपत्ति की क्षति और विवेचना का खर्च
आरोप पत्र में ₹3 करोड़ की संपत्ति के नुकसान की बात कही गई है, लेकिन विवेचना में इससे अधिक खर्च हो चुका है, जो कि इस मामले में विवेचना की गैर-जरूरतमंद को दर्शाता है।
9. गवाहों की विश्वसनीयता
अभियोग पत्र में इस्तेमाल किए गए गवाह, जिनमें से अधिकांश आदतन अपराधी हैं, की विश्वसनीयता पर जोगी ने सवाल उठाए हैं।
10. हथियारों की बरामदगी की हास्यास्पद
आरोप पत्र में आरोप है कि आरोपियों ने जिन हथियारों का इस्तेमाल किया, उन्हें उन्होंने बाद में अपने घरों में छिपा रखा था, जो विवेचना की गंभीरता पर सवाल उठाता है।
11. धारा 65-B और डिजिटल सबूतों का अभाव
मोबाइल कॉल डिटेल्स और CCTV फुटेज के बावजूद आरोपियों का किसी भी अपराध में शामिल होने का कोई ठोस प्रमाण नहीं है।
विवेचना की निंदा और मानवाधिकारों का उल्लंघन
अमित जोगी ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह पूरा प्रकरण केवल सांप्रदायिक राजनीति और सरकार विरोधियों को दबाने का प्रयास है। निर्दोषों को बिना ठोस सबूतों के जेल में बंद करना न केवल उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि यह मानवाधिकारों का भी हनन है।
अमित जोगी ने इस पूरे मामले की फिर से निष्पक्ष जांच की मांग की है और जेल में बंद निर्दोषों को न्याय दिलाने का आश्वासन दिया है। उनका यह कदम सरकार और पुलिस की कार्यप्रणाली पर गंभीर सवाल खड़ा करता है, जो कि इस तरह की घटनाओं में निष्पक्षता और पारदर्शिता की कमी को उजागर करता है।
बलौदा बाजार अग्निकांड और इससे जुड़ी विवेचना एक गंभीर मुद्दा बन गई है। अमित जोगी के द्वारा किए गए खुलासों ने इस मामले की तह तक जाने और न्यायिक प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता को रेखांकित किया है। उनके द्वारा उठाए गए सवाल पुलिस और प्रशासन की विश्वसनीयता पर सवालिया निशान लगाते हैं, और यह सुनिश्चित करना आवश्यक हो गया है कि इस मामले की पुनः निष्पक्ष जांच की जाए।